गुलाबी नगरी में नाटकों को निगल गया काेरोनावायरस, रवींद्र मंच में अंदर लटके पर्दे सूने और उदास, अंधेरे मंच को रोशनी का इंतज़ार

जयपुर. (ईशमधु तलवार) जयपुर नगर में ‘कोरोनावायरस’ कई नाटक निगल गया। रवींद्र मंच और जवाहर कला केंद्र की चहल-पहल को भी चटकर गया। इस कोरोनाकाल में नाटक करने वालों की जिंदगी एक नाटकीय मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है। जयपुर के तेजी से उभरते रंगकर्मी अनिल मारवाड़ी कलाकारों की डेढ़ माह की रिहर्सल के बाद तैयार किया नाटक ‘सफेद ज्वारा’ 14 मार्च को मंचित करने जा रहे थे। गणगौर परंपरा पर खुद के लिखे हास्य नाटक की तैयारी के सिलसिले में जब वे नाटक के दिन सुबह रवींद्र मंच पर पहुंचे तो पता चला कि वह बंद हो चुका है।


सरकार ने सभी स्कूल, कॉलेज, सिनेमाघर बंद कर दिए हैं। उसी दिन दिनेश प्रधान के  केपी सक्सेना लिखित नाटक ‘बाप रे बाप’ का रवींद्र मंच के ऊपरी तल पर स्टूडियो थियेटर में मंचन होना था, लेकिन शुरू होने से पहले ही इसका भी पटाक्षेप हो गया। नाट्य निर्देशक रुचि भार्गव ने निर्मल वर्मा के नाटक ‘तीन एकांत’ की रिहर्सल पूरी कर ली थी, लेकिन यह भी लॉकडाउन के एकांत में चला गया। विकल्प नाट्य संगठन का प्रेमचंद गांधी के निर्देशन में नाटक ‘आज की दुर्गा’ भी शो के लिए तैयार था और 7 अप्रैल के लिए रविंद्र मंच बुक भी हो गया था। यह भी कोरोना के जलजले में बह गया।



अशोक राही की संस्था पीएमटी का 20 मार्च को मीरा रंग महोत्सव होना था और 25 मार्च को ब्रजभाषा का नाटक ‘अजब चोर की गजब कहानी’ होना था लेकिन इनकी बुकिंग भी रद्द हो गई। जयपुर के ‘जयरंगम’ नाट्य उत्सव ने देश के रंग जगत में अपनी एक नई पहचान बनाई है। जयरंगम के निदेशक दीपक गिरा ने बताया कि मुंबई और कोलकाता के बाद 21 मार्च को बेंगलुरु में नाट्य उत्सव होना था लेकिन वह रद्द करना पड़ा है। रवींद्र मंच सोसायटी भी एक नाट्य महोत्सव आयोजित करने वाली थी। इसमें साबिर खान ने भी मणि मधुकर के नाटक ‘दुलारी बाई’ का प्रस्ताव दिया था। राजस्थान उर्दू अकादमी साबिर खान का नाटक ‘मंटो हाजिर होगा’ करने जा रही थी। ‘कोरोना’ सब समेटकर ले गया। जयपुर के शीर्ष रंगकर्मी साबिर खान अब घर बैठे रंजीत कपूर का नाटक ‘13, कब्रिस्तान एक्सटेंशन उर्फ आंटियों का तहखाना’ पढ़कर वक्त गुजार रहे हैं। जोसेफ केसलिंग से प्रेरित यह नाटक दो ऐसी आंटियों की कहानी है जो जीवन से परेशान बूढ़े लोगों को अपने घर में आश्रय देती हैं और फिर उन्हें इसलिए मार डालती हैं ताकि उन्हें जीवन के कष्टों से मुक्ति मिल जाए। 



एक अन्य वरिष्ठ रंगकर्मी शेखर शेष इन दिनों जयपुर के बीते जमाने के नाटकों की कहानी लिख रहे हैं। वह कहते हैं कि कोरोनाकाल का एकांत खुद को फिर से झाड़-पोंछकर रीसाइकिल करने का वक्त है।  लॉकडाउन के इस दौर में कुछ रंगकर्मी कोराना को लेकर लोगों में चेतना जगाने के काम में भी जुटे हैं। अनिल भागवत ने केवल एक पात्र को लेकर कोरोना पर दो शॉर्ट फिल्में बनाई हैं, जिनमें दिलचस्प तरीके से इस बीमारी से लड़ने की तरकीबें समझाई गई हैं। उन्होंने बाड़मेर के सीमावर्ती क्षेत्र गडरारोड के 1965 के युद्ध में मारे गए 17 रेल कर्मियों की मार्मिक दास्तान पर भी एक नाटक लिखा है- ‘सोल्जर विदाउट गन।’ इसका वे 28 मार्च को शो करना चाहते थे लेकिन इसकी भी ‘भ्रूण हत्या’ हो गई। 



जयपुर में म्यूजिकल नाटक बनाने के लिए अपनी एक नई पहचान बनाने वाले चर्चित रंगकर्मी मुकेश वर्मा ने कोरोना को लेकर ब्रजभाषा में अपने लिखे के गीत को लोकगीत की धुन ढाल कर एक वीडियो बनाया है, जो वॉट्सएप पर खूब वायरल हो रहा है। बोल हैं- दरवाजा करलो बंद करोना वायरस आ जाएगो.../या बहुत बुरी बीमारी है/यासे पूरी दुनिया हारी है/यासे सास बचे ना नंद/दरवाजे करलो बंद। 
इस गीत में ढोलक बजाने वाला कलाकार बंसी है, जो अक्सर नाटकों में ढोलक बजाता दिखता है। कठपुतली नगर में रहने वाला बंसी कहता हैं- हमारी जब ढोलक बजती है, तब घर में चूल्हा जलता है। आजकल कोई पूरी-सब्जी के पैकेट दे जाता है तो खा लेते हैं। 



उधर, जयपुर के कुछ युवा रंगकर्मियों ने पिछले दिनों मुंबई का इसलिए रुख गया था कि वहां संघर्ष करेंगे, कोई काम मिल जाएगा, लेकिन वे लॉकडाउन में अंधेरी वेस्ट के एक छोटे से कमरे में कैद हैं। इनमें अनिल बैरवा, नितिन सैनी, रोहन शर्मा और नलिन माहेश्वरी शामिल हैं।



जयपुर का रंगमंच अपने वक्त में बहुत समृद्धशाली रहा है और इसने पिंचू कपूर, ओम शिवपुरी, असरानी, इरफान जैसे कलाकार दिए हैं। उनकी परंपरा से आबाद रहने वाला रवींद्र मंच चुपचाप खड़ा है। अंदर  लटके पर्दे सूने और उदास हैं। मंच पर अभी तो ‘फेड आउट’अंधेरा चल रहा है, जिसे ‘फेड इन’ यानी रोशनी का इंतज़ार है।


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